धार

मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए ईद सबसे बड़ा पर्व होता है लेकिन उससे पहले उन्हें एक माह तक उपवास रखना होता है, ये उपवास हिन्दू धर्म के लोगों के उपवास रखने से पूरा अलग होता है। मुसलमानों के बारह महीनों में एक महीने को रमजान कहा जाता हैव जिसमेश रमजान उपवास किया जाता है।

इस्लाम धर्मे के लिए रमजान या रमदान को पवित्र महिना माना जाता है। इस पवित्र महीने में इस्लाम में आस्था रखने वाले लोग नियमित रूप से रोज़े यानि उपवास रखते हैं। इस दौरान दिनभर कुछ भी खाना या पीना मना होता है। रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवा महिना होता है और इस धर्म में चाँद को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है। इबादत करना, रोज़ा रखना, भोजन करवाना और आपसी मेल मिलाप बनाये रखना इस त्यौहार की प्रमुख विशेषता है।

शहर काजी वकार सादिक ने बताया कि की रमजान के महीने में जन्नत के दरवाजे खुल जाते हैं। अल्लाह रोजेदार और इबादत करने वाले की दुआ कुबूल करता है और इस पवित्र महीने में जीवन में किये गए सारे गुनाहों से मुक्ति मिलती है। रमजान में मुस्लिम लोगों को बहुत से नियमों का पालन करना पड़ता है। रोज़ा रहने के दौरान सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक कुछ भी नहीं खा-पी सकते है।

अरबी में रोज़ा को ‘सौम’ कहा जाता है जिसका अर्थ है परहेज करना ना केवल खाने पिने से बल्कि बुरे काम, बुरी सोच और बुरे शब्दों से भी। इसलिए रोज़े सिर्फ शारीरिक परहेज नहीं है बल्कि एक इंसान के शरीर और रूह का रोज़े के भाव की तरफ एक जिम्मेदारी है। रोज़ा सबके लिए एक फ़र्ज़ है जिसे रखने से आत्मा की शुद्धि, अल्लाह की तरफ पूरा ध्यान और कुर्बानी का अभ्यास होता है जिससे आदमी किसी भीतरह के लालच से खुें कामयाब हो पाता है।

रमजान का इतिहास, शहर काजी ने बताया कि

रमजान का महीना का इतिहास ये बताता है कि, इसका सिलसिला सदियों से चला आ रहा है। इस्लामिक धर्म के मान्यताओं के अनुसार ऐसा कहा जाता है की 610 ईस्वी में पैगंबर मुहम्मद साहब के जरिये पवित्र किताब "कुरान शरीफ" जमीन पर उतरी थी तभी से दुनियाभर के मुसलमान समुदाय द्वारा पहली बार कुरान उतरने की याद में पुरे महीने रोज़े रखते हैं। लिहाजा रमजान को कुरान के जश्न का भी मौका माना जाता है। इस्लाम धर्म में रोजा को अल्लाह का शुक्रिया अदा करने का त्यौहार माना गया है।