पारंपरिक खेती में नवाचार कर कैसे कोई समृद्धिशाली बनता है। यह जानना हो तो विपिन के अनुभवों का लाभ लेना चाहिए। खजुहाकला रीवा के ग्राम डीही के विपिन कुमार त्रिपाठी ने बताया कि उनके पास 6 एकड़ खेती की जमीन है। वे शिक्षित होते हुये भी पहले पारंपरिक खेती किया करते थे। बोनी के समय घर के ही उपयोग से बचे हुये बीजों से बोनी करते थे। समय-समय पर रासायनिक उर्वरक यूरिया एवं डीएपी का उपयोग करते थे। इसके बाद भी उनकी 5 एकड़ जमीन में 78 Ïक्वटल धान एवं 43.0 क्विंटल गेंहू की पैदावार होती थी। बमुश्किल चना केवल दो क्विंटल एवं मसूर 2 क्विंटल होता था। भरपूर मेहनत करने के बाद भी कम पैदावार होने से कभी-कभी मन हताश होने लगता था। क्योंकि खेती की आय से साल भर का काम तो चल जाता था लेकिन बचत एक भी नहीं होती थी। इसी बीच कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिकों से मुलाकात करने पर उन्होंने फसल विविधीकरण का उपयोग करने तथा बोनी में प्रमाणित बीज का ही उपयोग करने की सलाह दी। उनकी सलाह पर समिति से प्रमाणित बीज लेकर बोनी की। बोनी के समय कृषि यंत्रों का उपयोग किया और रासायनिक उर्वरक की जगह जैविक खाद का उपयोग किया। समय-समय पर फसलों में कीटनाशक दवाईयों  का छिड़काव किया इससे फसल उत्पादन में आशतीत सफलता मिली। अबकी पहली बार 165 क्विंटल धान तथा 54 क्विंटल गेंहू की पैदावार हुई। 3 क्विंटल चना एवं 3 क्विंटल मसूर का उत्पादन हुआ। विपिन ने बताया कि उन्होंने आयस्टर मसरूम का उत्पादन भी किया जिसमें 210 क्विंटल मसरूम की पैदावार हुई। इस बार फसल उत्पादन ने मेरा जीवन बदल दिया फसलों एवं मशरूम को बेचने पर मुझे लगभग 5 लाख रूपये की आय हुई। विपिन ने बताया कि फसल चक्र बदल कर और वैज्ञानिक विधि से बोनी करके अपने जीवन में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। जरूरत है तो बस खेती में नवाचार करने की।