खरगोन -गाजर घास को गोबर के साथ मिलाकर बना सकते हैं कम्पोस्ट खाद -----
पीजी गाजर घास उन्मूलन विषय पर हुआ व्याख्यान
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शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय खरगोन में आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत वनस्पति शास्त्र विभाग द्वारा प्राचार्य डॉ. आरएस देवडा के संरक्षण एवं डॉ. शैल जोशी एवं आईक्यूएसी डॉ. वंदना बर्वे के मार्गदर्शन में गुरूवार को गाजर घास उन्मूलन विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता वनस्पति शास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. एमएम केशरे ने बताया कि गाजर घास एक खरपतवार हैं। इसका वैज्ञानिक नाम पारथेनियम हिस्टोफोरस है इसे सफेद टोपी के नाम से भी जाना जाता है। यह एस्टीरेसी कूल का पौधा है। इसमें किसी भी मौसम में अंकुरण की क्षमता पायी जाती हैं। भारत में इसका प्रवेश सन 1960 में मेक्सिको दक्षिण अमेरिका से आयातित गेहूँ के साथ आए गाजर घास के सुक्ष्मा बीजों के जरीए हुआ। इस घास को फूल आने के पूर्व ही खत्म कर देना चाहिए ताकि इसके सूक्ष्म बीज और ना फैले। क्योंकि एक सुक्ष्म बीज 50 हजार पौधों को जन्म दे सकता हैं। यह घास अत्यंत तेजी से फैलती हैं इसे छुने से एलर्जी एवं अन्य त्वचा संबंधी रोग होते है। वहीं प्रो. गिरीश शिव ने गाजर घास होने वाली हानि के साथ इसके उन्मूलन के लाभकारी उपायों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि गाजर घास को गोबर के साथ मिलाकर कम्पोस्ट खाद तथा कागज भी बनाया जा सकता है। कार्यक्रम का संचालन संयोजक प्रो. बीएस सोलंकी ने किया। कार्यक्रम में प्रो. सीएल निगवाल, डॉ. पूजा महाजन, डॉ. लोकेश बघेल, प्रो. शिवानी कर्मा तथा प्रो. मीनाक्षी साठे उपस्थित रही।