ग्वालियर दक्षिण रुद्रांश दर्पण:

 बच्चे जब पिता की ऊँगली पकड़कर चलते हैं किसी भी व्यक्ति के लिए पिता पर कुछ भी लिख पाना ठीक वैसा ही है जैसे ईश्वर की कृपा की शाब्दिक व्याख्या करने का दुस्साहस करना ।पिताजी हमारे पूरे परिवार के लिए ईश्वर का जीवंत स्वरूप ही हैं, हम सभी के शक्तिपुंज हैं।उनके व्यक्तित्व को,स्वभाव को ,आचरण को शाब्दिक तौर पर कह पाना मेरे लिए और अनुज प्रशांत के लिए असम्भव ही है।मैं जो भी थोड़ा कुछ बेहतर कर पाता हूँ उसका संपूर्ण श्रेय पिताजी को ही जाता है।मेरी पहचान और मेरा प्रावण्य उन्हीं से है।वो मेरे और प्रशांत के लिए रामकृष्ण परमहंस भी हैं और द्रोणाचार्य भी हैं।उन्होंने ही हमें जनसेवा का मार्ग प्रशस्त किया है और कैसे विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में अपने सिद्धांत और नैतिक मूल्यों के साथ जीवन जीवंत जीना है ये पिताजी से ही सीखा है।आज जीवन में जहाँ कहीं भी हैं उन्हीं के आशीर्वाद और प्रेरणा से ही हैं । वो हमारे पिता भी हैं ,गुरु भी हैं और हमारे प्रेरणास्त्रोत भी हैं।आपको जन्मदिन की अनंत ,अशेष शुभकामनाएँ।परमपिता परमात्मा आपको सदैव स्वस्थ रखे दीर्घायु दे यही प्रभु से प्रार्थना है। परिवार में हम सभी सौभाग्यशाली हैं जो आपके वटवृक्षीय छाव में पल्लवित हो रहे हैं ॥